राजस्थान में नई लहर और राजनीतिक चाल: कौन हैं RLP प्रमुख हनुमान बेनिवाल
परिचय
राजस्थान की राजनीति में यदि किसी नए और जुझारू चेहरे ने तेज़ी से लोकप्रियता हासिल की है, तो वह हैं – हनुमान बेनिवाल। उनका नाम आज सिर्फ एक क्षेत्रीय नेता तक सीमित नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी उनकी आवाज सुनी जाती है। किसान वर्ग, युवाओं और ग्रामीण समुदाय में उनकी गहरी पकड़ है। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले वह फिर से चर्चा में हैं।
इस लेख में हम जानेंगे हनुमान बेनिवाल का पूरा राजनीतिक सफर, उनकी पार्टी RLP का गठन, हाल के निर्णय, NDA से दूरी और भविष्य की रणनीति।
हनुमान बेनिवाल कौन हैं?
हनुमान बेनिवाल का जन्म 12 दिसंबर 1972 को राजस्थान के नागौर जिले में हुआ था। वह एक किसान परिवार से आते हैं और हमेशा से ही किसानों, युवाओं व ग्रामीण जनता के मुद्दे उठाने के लिए जाने जाते रहे हैं। हनुमान बेनिवाल ने Jat समाज के बड़े नेता के रूप में अपनी पहचान बनाई और यही वजह है कि वह राजस्थान में 'जाट लीडर' के रूप में प्रसिद्ध हुए।
राजनीतिक करियर की शुरुआत
हनुमान बेनिवाल ने राजनीति में प्रवेश BJP के माध्यम से किया। वे BJP में युवा नेता के रूप में उभरे और काफी समय तक पार्टी में सक्रिय रहे। लेकिन समय के साथ उन्होंने पार्टी में अनदेखी और गुटबाज़ी का आरोप लगाते हुए वर्ष 2013 में BJP छोड़ दी। इसके बाद उन्होंने अपने दम पर राजनीति में नया रास्ता बनाने का निर्णय किया।
RLP (राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी) का गठन
2018 में हनुमान बेनिवाल ने अपनी पार्टी – राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) की स्थापना की। उनका उद्देश्य था कि किसानों और युवाओं के मुद्दों को मजबूती से उठाया जाए। RLP ने 2018 राजस्थान विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया और जनता के बीच इसे एक मजबूत विकल्प माना गया।
NDA और BJP से गठबंधन
2019 के लोकसभा चुनाव में हनुमान बेनिवाल ने अपनी पार्टी RLP को NDA (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) के साथ जोड़ लिया और नागौर से सांसद चुने गए। इस गठबंधन को राजस्थान में भाजपा के लिए फायदेमंद माना गया, क्योंकि RLP का जाट वोटबैंक भाजपा के साथ जुड़ा।
लेकिन कृषि कानूनों के समय RLP ने खुलकर किसानों का समर्थन किया और NDA से अलग हो गई। यह एक बहुत बड़ा राजनीतिक फैसला था जिसने हनुमान बेनिवाल को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में ला दिया।
कांग्रेस और बीजेपी दोनों पर निशाना
हनुमान बेनिवाल ने न केवल BJP बल्कि कांग्रेस की भी कई नीतियों की आलोचना की। वे हमेशा कहते हैं कि दोनों बड़े दलों ने राजस्थान को सिर्फ वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया है। हनुमान बेनिवाल किसान आंदोलन, बेरोजगारी, सरकारी भर्तियों में धांधली, पेपर लीक जैसे मुद्दों पर लगातार आवाज उठाते रहे हैं।
हाल ही की गतिविधियाँ और 2024 चुनाव की तैयारी
2024 लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र हनुमान बेनिवाल फिर से सक्रिय हो गए हैं। उन्होंने साफ कहा है कि अगर किसानों और युवाओं की समस्याओं का समाधान नहीं हुआ, तो वह किसी भी बड़े गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेंगे।
उन्होंने यह भी संकेत दिया है कि अगर उनकी शर्तें मानी जाएँ तो वह किसी गठबंधन का हिस्सा बन सकते हैं, नहीं तो RLP स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ेगी। उनके इस रुख को 'प्रेशर पॉलिटिक्स' भी कहा जा रहा है, जिसमें वे केंद्र और राज्य सरकार दोनों पर दबाव बनाकर अपने मुद्दों को प्रमुखता दिलाना चाहते हैं।
जनता में उनकी छवि
हनुमान बेनिवाल की छवि एक तेजतर्रार, ईमानदार और जमीनी नेता की रही है। वे सीधे-सपाट बोलते हैं और किसी दबाव में नहीं झुकते। यही वजह है कि युवा और किसान वर्ग उन्हें एक असली नेता के रूप में देखते हैं। RLP का वोट प्रतिशत भले ही कम हो, लेकिन यह निर्णायक चुनावों में 'किंगमेकर' की भूमिका निभा सकती है।
चुनौतियाँ और आलोचनाएँ
हालांकि हनुमान बेनिवाल को समर्थन तो मिलता है, लेकिन कई बार उन पर 'ओवर पॉलिटिकल ड्रामा' करने के आरोप भी लगते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि वे सिर्फ मुद्दों को भुनाते हैं पर समाधान नहीं देते।
इसके अलावा, उनकी पार्टी अभी भी काफी हद तक व्यक्ति-आधारित (personality-based) पार्टी है। संगठनात्मक मज़बूती की कमी इनके लिए भविष्य में चुनौती बन सकती है।
भविष्य की संभावनाएँ
हनुमान बेनिवाल के सामने 2024 चुनाव एक बड़ा अवसर है। अगर वे सही रणनीति अपनाते हैं, तो RLP का विस्तार राजस्थान के बाहर हरियाणा और उत्तर प्रदेश के कुछ जाट बहुल इलाकों में भी हो सकता है।
अगर उन्होंने किसानों और युवाओं के लिए ठोस रोडमैप पेश किया, तो वे NDA या INDIA किसी भी गठबंधन में प्रभावशाली भूमिका निभा सकते हैं।
निष्कर्ष
हनुमान बेनिवाल ने बहुत कम समय में अपनी एक अलग राजनीतिक पहचान बनाई है। उन्होंने साबित किया है कि साफ-साफ बोलने वाला नेता जनता में भरोसा हासिल कर सकता है।
2024 का चुनाव उनके लिए एक अग्निपरीक्षा की तरह होगा। क्या वे स्वतंत्र रूप से अपनी ताकत दिखाएंगे या किसी बड़े गठबंधन के साथ जाकर किसानों और युवाओं की बात मनवाएंगे — यह देखने वाली बात होगी।
एक बात तय है, कि हनुमान बेनिवाल अब सिर्फ एक क्षेत्रीय नेता नहीं रहे, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी उनकी गिनती होने लगी है। अगर वे अपनी पार्टी को और मज़बूत बनाते हैं, तो आने वाले समय में वे एक मजबूत राजनीतिक विकल्प बन सकते हैं।