महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव से निकलकर ISRO तक पहुंचने वाले रामदास हेमराज मारबड़े की कहानी आज लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा बन चुकी है। गरीबी, संघर्ष और सीमित संसाधनों के बावजूद उन्होंने न केवल अपना सपना जिया बल्कि उसे हकीकत में बदल कर दिखाया।
गांव की गलियों से ISRO तक का सफर
रामदास महाराष्ट्र के गोंदिया जिले के खैरबोड़ी गांव के निवासी हैं। बचपन आर्थिक कठिनाइयों में बीता। उनके पिता सरकारी स्कूल में चपरासी थे और मां एक गृहिणी। परिवार की सीमित आमदनी के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी। दिन में गोलगप्पे (पानीपुरी) बेचते और रात में पढ़ाई करते — यही था उनका संघर्ष भरा रूटीन।
शिक्षा के लिए बेचा गोलगप्पा
रामदास ने गणेश हाई स्कूल, गुमधवाड़ा से स्कूल की पढ़ाई और सी. जी. पटेल कॉलेज से 12वीं पूरी की। कॉलेज की पढ़ाई के लिए उन्होंने नासिक के वायसीएम कॉलेज से बीए (प्राइवेट) किया। पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए गांव-गांव जाकर गोलगप्पे बेचते रहे।
तकनीकी शिक्षा बनी सफलता की चाबी
रामदास को समझ आ गया था कि तकनीकी ज्ञान के बिना नौकरी मिलना मुश्किल है। उन्होंने तिरोड़ा के ITI से पंप ऑपरेटर-कम-मेकैनिक कोर्स किया। यहां उन्होंने पंप चलाना, जल शोधन तकनीकें और उपकरणों की मरम्मत जैसे महत्वपूर्ण कौशल सीखे।
ISRO में कैसे मिली नौकरी?
2023 में ISRO ने अप्रेंटिस ट्रेनी के लिए आवेदन मांगे। रामदास ने तुरंत आवेदन किया और 2024 में नागपुर में लिखित परीक्षा पास की। इसके बाद श्रीहरिकोटा में स्किल टेस्ट क्लियर कर मई 2025 में उन्हें ISRO से नियुक्ति पत्र मिला। अब वे ISRO स्पेस सेंटर, श्रीहरिकोटा में पंप ऑपरेटर-कम-मेकैनिक के पद पर कार्यरत हैं।
प्रेरणा बनी रामदास की कहानी
आज रामदास की कहानी केवल उनके गांव ही नहीं, पूरे देश के युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत है। उन्होंने साबित कर दिया कि अगर इरादे मजबूत हों, तो कोई भी सपना अधूरा नहीं रह सकता। ISRO तक का सफर उनके जुनून, मेहनत और अडिग संकल्प की मिसाल है।
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