Mira baai : मोदी के मंत्री ने बताया मीरा का गलत संबंध उनके देवर के साथ, आईए जानते हैं क्या है मीराबाई का इतिहास



बीकानेर के सांसद अर्जुन राम मेघवाल ने बीते कुछ दिनों पहले एक सामाजिक मंच से वीर शिरोमणि मीराबाई के बारे में गलत टिप्पणी की. अर्जुन राम मेघवाल भारतीय जनता पार्टी के मंत्री भी हैं और बीकानेर के सांसद हैं आपको बता दे कि यह अर्जुन राम मेघवाल कुछ साल पहले भजन करता था  लेकिन अब वह सांसद हैं और उन्होंने कहा वीर शिरोमणि मीरा बाई के बारे में की मीरा का संबंध उनके देवर से था साथ ही उन्होंने कहा कि इतिहास में बताया जाता है की मीरा का पति की मौत के बाद मीरा का संबंध देवर के साथ थे इसी को लेकर राजपूत समाज में आक्रोश है राजपूत समाज के कहीं  संगठनों ने इनका विरोध किया, आवाज उठाई और बोला कि यह मेघवाल समाज के वरिष्ठ नेता अर्जुन राम मेघवाल को यह अधिकार किसने दिया हमारे राजपूत समाज के किसी राजघराने की बेटी के बारे में टीका टिप्पणी करने की और अब तीन दिन बाद में मेघवाल ने माफी भी मांगी है.

 आईए जानते हैं क्या है हकीकत वीर शिरोमणि मीराबाई का इतिहास
वीर शिरोमणि मीरा बाईसा एक लोक संत थी वह भगवान श्री कृष्णा से बहुत प्रेम करती थी ऐसा बताया जा रहा है की मीराबाई ने अपना पति भगवान श्री कृष्ण को ही मान लिया था और जन्म से मृत्यु तक उन्होंने अपने अपना पति भगवान श्री कृष्ण को माना मीराबाई का जन्म राजस्थान के पाली जिले के कुंडली गांव में हुआ था उनके पिता का नाम रतन सिंह था और रतन सिंह पाली के बाजुली गांव के राजा थे रतन सिंह और वीरमदेव दोनों सगे भाई थे वीरमदेव का बेटा जयमल हुआ करते थे और रतन सिंह की बेटी वीर शिरोमणि मीराबाई के नाम से जानी जाती है मीराबाई एक राजा के घर में जन्म लिया तो वह राजकुमारी हुई मीरा के घर के अंदर भगवान श्री कृष्णा की पूजा होती थी तो मीरा भी अपने परिवार के साथ भगवान श्री कृष्ण की पूजा की करती थी धीरे-धीरे समय बीत गया और मीरा के के घर के पास से एक बारात निकल रही थी तो मीरा ने अपनी दादी से पूछा कि यह दूल्हा कौन है, क्यों घोड़ी पर चढ़ा? मीरा बार-बार यह सवाल करती रही तो उन्होंने बताया कि उनकी शादी है यह उस लड़की का दूल्हा है, और वह दुल्हन है इनकी आज शादी होगी तो मीरा ने पूछा कि मेरा दूल्हा कौन है अब 
मीरा छोटी थी उम्र के हिसाब से तो दादी सा समझ नहीं पा रहे थे कि इसका जवाब क्या दूं मगर मीरा जिद्दी थी दादी ने उनके घर में पूजा होती थी पूजा स्थल की तरफ देखा और भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति दिख रही थी तो दादी ने उंगली दिखाते हुए कहा कि तेरा दूल्हा वह है श्री कृष्णा, और तब से मीरा श्री कृष्णा को दुल्ला बना बैठी, और पूजा में मगन हो गई, पूजा करते-करते इतनी पूजा और भक्ति में मगन हो गई की देखते-देखते वह कृष्ण से प्रेम और अपना पति अपना सब कुछ मानने लगी |  राजपूत परिवार से आने वाली मीरा समाज के संस्कार, समाज की रीति रिवाज के हिसाब से मीरा की शादी फिक्स की गई और मीरा की शादी भोजराज सिंह के साथ हो गई मीरा ससुराल गई और मीरा ने राजा भोजराज सिंह जी से कहा की मेरी शादी हमारे रीति रिवाज के हिसाब से आपके साथ हुई है लेकिन मैं अपना पति भगवान श्री कृष्ण को मान चुकी हूं अभी भी मानती हूं और मानती रहूंगी मैं भगवान श्री कृष्ण की भक्ति करती हूं उनसे प्रेम करती हूं और मैं जीवन भर भगवान श्री कृष्ण से प्रेम करूंगी उनकी पूजा पाटन करूंगी भोजराज सिंह बहुत सरल स्वभाव के राजा थे और उन्होंने कहा की ठीक है अगर आपको इतना ही भगवान श्री कृष्ण से प्रेम है भक्ति है आपको पूजा करनी है आप करते आ रहे हैं तो आप करते रहिए मुझे कोई एतराज नहीं भोजराज सिंह ने मीरा का सपोर्ट किया, भोजराज सिंह राणा सांगा के बेटे थे राणा सांगा एक बहुत बड़ी जानी-मानी हस्ती थी ऐसा बताया जा रहा है की हजारों ताने सुनने के बाद भी भोजराज सिंह ने मीरा का सपोर्ट किया और मीरा भगवान श्री कृष्ण की पूजा में मगन हो गई पूजा पाठ करती रही और एक दिन राजा भोजराज सिंह की मृत्यु हो जाती है और उसे टाइम में रीति रिवाज यह था कि अगर कोई राजा की मृत्यु होती है तो उनकी पत्नी उनके साथ सती होना पड़ता था और बहुत सारी पहले भी औरतें सती हुई थी अपने पति के साथ, लेकिन राणा सांगा ने कहा कि नहीं यह अपनी मीरा अपने पति श्री कृष्ण को मान रही है और तो इनको सती नहीं होना है



वीर शिरोमणि मीराबाई की कविता
वीर शिरोमणि मीराबाई की कविता
मेरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरों न कोई
जा के सिर मोर-मुकुट, मेरो पति सोई
छाँड़ि दयी कुल की कानि, कहा करिहैं कोई?
संतन द्विग बैठि-बेठि, लोक-लाज खोयी
असुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम-बलि बोयी
अब त बेलि फॅलि गायी, आणंद-फल होयी
दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलायी
दधि मथि घृत काढ़ि लियों, डारि दयी छोयी
भगत देखि राजी हुयी, जगत देखि रोयी
दासि मीरां लाल गिरधर! तारो अब मोही।
                          वीर शिरोमणि मीराबाई

स्याम म्हाने चाकर राखो जी,
गिरधारी लाला म्हाँने चाकर राखोजी।
चाकर रहस्यूँ बाग लगास्यूँ नित उठ दरसण पास्यूँ।
बिन्दरावन री कुंज गली में , गोविन्द लीला गास्यूँ।
चाकरी में दरसन पास्यूँ, सुमरन पास्यूँ खरची।
भाव भगती जागीरी पास्यूँ , तीनूं बाताँ सरसी।
मोर मुगट पीताम्बर सौहे , गल वैजन्ती माला।
बिन्दरावन में धेनु चरावे , मोहन मुरली वाला।
ऊँचा ऊँचा महल बनावँ बिच बिच राखूँ बारी।
साँवरिया रा दरसण पास्यूँ ,पहर कुसुम्बी साड़ी।
आधी रात प्रभु दरसण ,दीज्यो जमनाजी रे तीरा।
मीराँ रा प्रभु गिरधर नागर , हिवड़ो घणो अधीरा।
पग घुँघरू बांधि मीरां नाची
मैं तो मेरे नारायण सूं, आपहि हो गई साची
लोग कहँ, मीरा भई बावरी, न्यात कहैं कुल-नासी
विस का प्याला राणी भेज्या, पवित मीरा हॉर्सी
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, सहज मिले अविनासी 
हरि आप हरो जन री भीर।
द्रोपदी री लाज राखी, आप बढायो चीर।
भगत कारण रूप नरहरि, धरयो आप सरीर।
बूढतो गजराज राख्यो , काटी कुण्जर पीर।
दासी मीराँ लाल गिरधर , हरो म्हारी भीर।

उँचा उँचा महल बणाव , बिच बिच राखूँ बारी।
साँवरिया रा दरसण पास्यूँ , पहर कुसुम्बी साडी।
आधी रात प्रभु दरसण , दीज्यो जमनाजी रे तीरां।
मीराँ रा प्रभु गिरधर नागर , हिवडो घणो अधीराँ॥


1. चित्तौड़गढ़ का प्रसिद्ध मीरा मंदिर :

मीरा मंदिर, चित्तौड़गढ़ में मीरा बाई के मंदिर 1494 ईस्वी में महाराणा कुम्भा ने बनवाया था। इस मीरा मंदिर को “कुंभ श्याम मंदिर” के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण उत्तर भारतीय वास्तुकला के अंतर्गत किया गया है जिसमें प्रत्येक कोण में चार मंडप वाले कक्ष है और उसी के क्षेत्र में खुली विधिकाए भी है । यह मंदिर एक ऐतिहासिक और धार्मिकता का ऐसा आकर्षक उदाहरण हैं कि कोई भी व्यक्ति इस मंदिर के पूजा स्थान तक पहुँचता हैं तो वो यहां बहुत खुशी और सुकून महसूस करता हैं।

यहां आने वाला हर व्यक्ति इन दीवारों पर बनी नक्काशी को निहारता रह जाता हैं क्योंकि यहां की हर नक्काशी में भगवान श्री कृष्ण और मीरा बाई की कहानियों को तथा उनके द्वारा दिए गए बलिदानों को दर्शाया गया हैं। अर्थात आगंतुक भगवान कृष्ण के प्रति मीराबाई के प्रेम और स्नेह की कहानियों से मोहित हो जाते हैं। यह मंदिर हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण पूजा स्थल माना जाता है क्योंकि यहां पर मीराबाई ने भगवान कृष्ण को समर्पित कई कविताएं रची और लिखी थी।

यह भी एक कारण है कि यह मीरा मंदिर एक ऐतिहासिक स्मारक है जो मीरा और कृष्ण की प्रेम भक्ति को दर्शाते हुए भारत को राजस्थान की समृद्ध संस्कृति से जोड़े रखता है। यह मीरा बाई मंदिर अथवा "कुंभ श्याम मंदिर" राणा कुंभा के शासनकाल के दौरान से निर्मित एक गौरवशाली स्थल भी माना गया है। इसमें मीरा बाई ने भगवान कृष्ण के उत्साही भक्त के रूप में रहने के लिए अपने शाही जीवन शैली को भी त्याग दिया था।

2. मेड़ता का प्रसिद्ध मीरा मंदिर :

राजस्थान राज्य के नागोर जिले में स्थित मेड़ता शहर राजस्थान के मध्यवर्ती नगर जोधपुर से 100 मील दूर है। मेड़ता शहर का मीरा मंदिर राजस्थान के प्रमुख और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है, जिसका निर्माण राजा राव दूत ने करवाया था। नागोर जिले के पास कुड़की जहां मीरा बाई का जन्म हुआ, उससे कुछ ही दूरी पर स्थित मेड़ता शहर , जहाँ पर मीरा बाई का  लालन-पालन हुआ जिससे इस शहर को लोग "मीरा की नगरी" के नाम से जानते हैं। यहाँ पर स्थित विशाल मंदिर में मीरा बाई की प्रतिमा और भगवान चारभुजा नाथ की एक आकर्षक प्रतिमा स्थापित है।

इनके अलावा इसी मीरा मंदिर में गुरु रैदास जी की प्रतिमा भी स्थापित हैं जो मीरा बाई के गुरु हुआ करते थे। मीरा बाई भी इसी मंदिर में बैठकर अपने ईश्वर भगवान कृष्ण की पूजा-आराधना करती थी। इस मीरा मंदिर परिसर में एक बड़ा सा संग्रहालय भी है जिसके अंतर्गत मीरा बाई की जीवनी के बारे में बताया गया हैं। यहां प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में लोग दर्शन करने आते हैं। इस मीरा मंदिर परिसर में सावन के महीने में सुदी छठ से तेरस तिथि तक बड़ा मेला भी लगता हैं।

3. वृंदावन का प्रसिद्ध मीरा मंदिर

वृंदावन यानी कि राधा-कृष्ण की नगरी, जैसे ही हम वृंदावन का नाम सुनते हैं तो हमारे मन में राधा कृष्ण का भक्ति भाव जाग उठता है। अर्थात् वृंदावन की हर गली राधा और कृष्ण की लीलाओं से जुड़ी हुई हैं। यहां के हर मंदिर में भगवान कृष्ण की अलौकिक लीलाओं को दर्शाया गया हैं। इनके अलावा यहां पर राजस्थान की प्रसिद्ध भगवान कृष्ण भक्त कवियित्री मीरा बाई का भी विशाल मंदिर स्थापित है। मीरा बाई भगवान कृष्ण की भक्त होने से वृंदावन आई और यहां पर भगवान कृष्ण के भजन-साधना करती थी। वृंदावन के जिस स्थान पर मीरा बाई ने भगवान कृष्ण की साधना की है ठीक उसी स्थान पर आज भी वृंदावन में मीराबाई का मंदिर है जिसका निर्माण 1842ईस्वी में बीकानेर के राज दीवान ठाकुर रामनारायण भट्टी ने करवाया था ।

इस मीरा मंदिर में मीरा बाई की संगमरमर शिला की एक आदमकद प्रतिमा स्थापित है और ठीक उसी के सामने भगवान चारभुजा नाथ की आकर्षक प्रतिमा स्थित है। कहा जाता है कि मीरा बाई भगवान कृष्ण की प्रेमीभक्त थी। इससे मीरा बाई के परिवारजन बदनाम महसूस होने से मीरा बाई को कृष्ण के प्रति पूजा न करने की कहा करते परंतु मीरा बाई के न मानने पर एक बार राणा ने मीरा बाई को मारने की कोशिश से एक बक्से में जहर भेजा परंतु जब बक्सा मीरा बाई के पास पहुंचा तो उसे खोलने पर बक्से में शालिग्राम शिला मिली। तब से ही मीरा बाई शालिग्राम शिला को लेकर वृंदावन आ पहुंची और यहां आकर भगवान कृष्ण के रूप में शालिग्राम जी पूजा-अर्चना की और आज यहां कृष्ण मीरा का सुप्रसिद्ध मंदिर माना जाता हैं, जहां उस शालिग्राम शिला को प्रवेश द्वार पर आज भी देखा जा सकता हैं।


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