5 पैसे में बिकने वाली भुजिया से 80 देशों तक का सफर: जानिए हल्दीराम(बीकानेरी भुजिया)की स्टोरी

الجمعة، 2 مايو 2025 ·

 बीकानेर की एक छोटी सी दुकान से शुरू हुआ हल्दीराम का सफर आज 80 से ज्यादा देशों तक फैल चुका है। जानिए 8वीं पास बिशनजी अग्रवाल कैसे बना देश का नमकीन किंग।





भुजिया से बनी पहचान: हल्दीराम की प्रेरणादायक कहानी

आज अगर किसी से पूछा जाए कि भारत का सबसे पॉपुलर स्नैक्स ब्रांड कौन सा है, तो अधिकतर लोग एक ही नाम लेंगे—हल्दीराम। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कभी यह भुजिया सिर्फ 5 पैसे प्रति किलो में बिकती थी?


शुरुआत बीकानेर की एक दुकान से

हल्दीराम की कहानी शुरू होती है राजस्थान के बीकानेर से, जहां मारवाड़ी व्यापारी भीखाराम अग्रवाल ने एक छोटी सी भुजिया की दुकान खोली थी। उनके पोते गंगा बिशनजी अग्रवाल, जिन्हें लोग प्यार से हल्दीराम कहते थे, ने इस दुकान में काम करना शुरू किया।


8वीं पास हल्दीराम ने रच दिया इतिहास

महज 8वीं कक्षा तक पढ़े हल्दीराम के पास कोई डिग्री नहीं थी, लेकिन उनके पास थी शानदार सोच और विज़न। उन्होंने पारंपरिक भुजिया में नए फ्लेवर और स्टाइल जोड़ने की ठानी। कई प्रयोगों के बाद उन्होंने मोठ के आटे से ऐसी भुजिया बनाई जो सबको पसंद आई।


डूंगर सेव’ बना ब्रांड

1937 में हल्दीराम ने अपनी कंपनी शुरू की और भुजिया का नाम रखा ‘डूंगर सेव’, जो बीकानेर के महाराजा डूंगर सिंह से प्रेरित था। सामान्य रेट 2 पैसे प्रति किलो था, लेकिन हल्दीराम ने इसे 5 पैसे रखा, जिससे ग्राहकों को यह एक प्रीमियम प्रोडक्ट लगा। यहीं से ब्रांड बनना शुरू हुआ।


कोलकाता से मिली नई उड़ान

1941 तक हल्दीराम का नाम बीकानेर से बाहर फैल चुका था। उन्होंने अपने बेटों के साथ मिलकर कोलकाता में ब्रांच खोली। यहीं से कंपनी का विस्तार तेज़ी से हुआ। हालांकि बाद में पारिवारिक कारणों से बीकानेर और कोलकाता यूनिट अलग हो गईं।


410 से ज्यादा प्रोडक्ट्स, 80+ देशों में कारोबार

आज हल्दीराम सिर्फ भुजिया तक सीमित नहीं है। कंपनी के पास 410 से ज्यादा प्रोडक्ट्स हैं जिनमें मिठाइयां, नमकीन, स्नैक्स और रेस्टोरेंट्स शामिल हैं।

1993 में हल्दीराम ने अमेरिका में अपने प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट करने शुरू किए।

आज यह ब्रांड 80 से ज्यादा देशों में मौजूद है।

भारत के स्नैक्स मार्केट में 38% से ज्यादा हिस्सेदारी है।

देशभर में 400+ स्टोर्स हैं।


निष्कर्ष:

हल्दीराम की यह कहानी बताती है कि अगर सोच अलग हो और मेहनत लगातार की जाए, तो एक छोटी सी दुकान भी एक इंटरनेशनल ब्रांड बन सकती है। यह कहानी हर युवा उद्यमी के लिए एक प्रेरणा है।


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